सुरक्षा के उपाय न किए गए तो आने वाले बरसात में हो सकता है बड़ा नुकसान
मुख्यमंत्री व डीएम उत्तरकाशी को रिपोर्ट भेज चुकी नगर पालिका
डॉ विनोद कुमार पोखरियाल

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी रुड़की के विशेषज्ञों ने बड़कोट नगर के अध्ययन के बाद इस नगर को यमुना नदी से गंभीर खतरा बताया है। टीम ने नगर के आपदा के लिहाज से अति संवेदनशील क्षेत्रों का अध्ययन करने के बाद स्पष्ट किया है कि आने वाली बरसात तिलाड़ी शहीद स्थल व नगर के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। टीम ने इस संबंध में पालिका को सचेत करते हुए सुरक्षात्मक उपाय करने की सलाह दी है।
आईआईटी रुड़की के सिविल इंजीनियर डॉ सतेन्द्र व जल संसाधन विभाग के डॉ एसके मिश्रा की अगुवाई में अध्ययन टीम ने आपदा के लिहाज से संवेदनशील स्थलों का अध्ययन किया। नगर पालिका बड़कोट के अध्यक्ष विनोद डोभाल ने अध्ययन टीम को निमंत्रण देने के साथ ही विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर आगामी पचास साल की विकास योजना भी तैयार करने की सर्वेक्षण टीम से सिफारिश की थी। अध्ययन टीम ने तिलाड़ी शहीद स्थल से अध्ययन की शुरूआत की। तिलाड़ी शहीद स्थल पर यमुना नदी तेजी से कटाव कर रही है। यहां यमुना शहीद स्थल के बेहद करीब से गुजर रही है और आने वाले बरसात में शहीद स्थल जल मग्न हो सकता है। शहीद स्थल खतरे में है और इसकी सुरक्षा को जल्द उपाय न किए गए तो वर्ष 1930 का इतिहास हमेशा के लिए रेत के टीम में भी तब्दील हो सकता है।
तिलाड़ी स्थल के बाद विशेषज्ञों ने बड़कोट शहर के नीचे बह रही यमुना नदी से कटाव का सर्वे किया। यहां यमनुा उस चोटी को तेजी से काट रही है, जिस पर बड़कोट नगर बसा है अब तक यहां यमुना नदी करीब 200 मीटर हिस्से को काट चुकी और जल्द सुरक्षा को लेकर कदम न उठाए गए तो यमुना बड़कोट शहर के अस्तित्व को ही समाप्त कर देगी। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि नदी अब तक कई नाली खेती युक्त जमीन को अपने में समा चुकी और अब बड़कोट शहर के नीचे की जमीन को तेजी से काट रही है। आने वाली बरसात में बड़कोट शहर नदी के कटाव से भू-स्खलन की जद में आ जाएगा। इसकी पूरी संभावना है। इस संबंध में नगर पालिका राज्य व जिला आपदा प्राधिकरण के साथ ही मुख्यमंत्री को भी पत्र भेज चुकी है, जिसमें स्पष्ट उल्लेख है कि बड़कोट नगर आपदा के मुहाने पर है, इसके संरक्षण के लिए उचित कदम उठाए जाएं हालांकि अभी तक मुख्य सचिव व जिलाधिकारी स्तर से इस पत्र का कोई जवाब नहीं आया है। इधर इस मामले में नगर पालिका अध्यक्ष बड़कोट का कहना है कि सरकार से अनुरोध किया गया है कि बड़कोट नगर को बचाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं।
नगर में एक मैदान केा हेलीपैड में तब्दील किया गया है लेकिन यह हेलीपैड भी भूस्खलन की जद में है और आहिस्ता-आहिस्ता नीचे की ओर खिसक रहा है। हेलीपैड के तीन साइट से भूस्खलन सक्रिय है। रोज सुबह से शाम तक इस मैदान से भूस्खलन का मलबा तिलाड़ी रोड पर गिरते हैं। यही भूस्खलन की यही रफ्तार रही तो यह पूरा मैदान जल्द ही खिसक कर तिलाड़ी मैदान को ध्वस्त कर देगा।
भूस्खलन की जद में पुरानी तहसील के भवन
हेलीपैड से कुछ दूरी पर सड़क के मोड पर पुरानी तहसील की आबादी भूस्खलन की चपेट में है। यहां राष्ट्रीय राजमार्ग खंड की सड़क करीब दस मीटर दब चुकी और यह सड़क कभी भी नीचे स्थित भवनों के ऊपर गिर सकती है। एनएच की वजह से करीब चार आवासीय भवन और उनमें रहने वाले लोग खतरे मे हैं।

इसके अलावा इस पूरे क्षेत्र में 20 से 25 आवासीय भवन है और यह सभी भवन भूस्खलन की जद में हैं, ये नीचे खिसक रहे हैं और सभी घरों में दरारें आ चुकी हैं। यहां वरुणावत की तर्ज पर पौधे तिरछे हो चुके। कहा जा सकता है कि यह एरिया प्रशासन को खाली करवाना चाहिए लेकिन गंगा घाटी में स्थित मुख्यालय के डीएम फिलवक्त इस समस्या से दूर ही हैं। इस बेहद संवेदनशील क्षेत्र में रह रही दशमी देवी का एक आवासीय भवन ध्वस्त हो चुका है। सिमला देवी, रणजीत सिंह, उपेंद्र का कहना है कि कई बार शिकायत कर चुके लेकिन प्रशासन का एक भी अधिकारी इस ओर देख तक नहीं रहा है। बड़कोट शहर खिसक रहा है और जहां तक आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बात करें तो आपदा प्राधिकरण के अध्य़क्ष यानि जिलाधिकारी से कई शिकायतों के बाद भी सुरक्षा को लेकर कुंभकरणी नींद में है। राष्ट्रीय राजमार्ग खंड इस उम्मीद में है कि जब तक गाड़ी दौड़ रही तब तक दौड़ने दो उसके बाद देखी जाएगी। अध्ययनकर्ताओं की टीम में सामाजिक वैज्ञानिक के तौर पर डॉ विनोद कुमार पोखरियाल भी शामिल रहे। उनका स्पष्ट कहना है कि सरकार दैवीय आपदा आने के बाद ही विशेष कारणों से सक्रिय होती है और आपदा इंतजार करती है। अध्ययन के बाद आईआईटी के विशेषज्ञ डॉ सतेन्द्र, डॉ एसके मिश्रा व आपदा विशेषज्ञ डॉ विनोद कुमार पोखरियाल ने एक प्रेस वार्ता को भी संबोधित कर बड़कोट के खतरे को लेकर आगाह किया।
बड़कोट इतिहास से वर्तमान तक
सीमांत जनपद उत्तरकाशी की रवांई घाटी का बड़कोट नगर यमुना नदी के किनारे बसा है। दिसम्बर 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसे नगर पालिका का दर्जा दिया। बन्दरपूँछ पश्चिमी हिमालय की 6320 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। यमुना नदी बड़कोट शहर की तलहटी में बहती है।
बड़कोट में कभी लहलहाते खेतों के बीच इकलौता पौराणिक शिव मंदिर था लेकिन अब यह मंदिर चारो ओर से बस्तियों से घिरा हुआ है। शिव मंदिर में एक प्राचीन कुंआ भी था लेकिन अब कुंआ विलुप्त हो चुका। बताते है कि बड़कोट में कभी 587 कुएं अस्तित्व में थे लेकिन अब जल कुुंड निर्माण में दब चुके हैं। शिव मंदिर की ऊंचाई पर बड़कोट की अधिष्ठात्री मां भगवती का पुराना मंदिर है और पास में ही लक्ष्मी नारायण का प्राचीन मंदिर है। लक्ष्मीनारायण मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य चल रहा है और यह पहला मंदिर है जो स्थानीय पत्थरों को तराश कर बनाया जा रहा है।
जल कुंडों को संरक्षण की दरकरार
बड़कोट में जल कुंड लगभग समाप्ति की ओर हैं। यहां बुद्धि सिंह रावत राजकीय इंटर कॉलेज के खेल मैदान में सरस्वती कुंड स्थित है। इस कुंड में अभी भी जल है लेकिन इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य व अध्यापकों ने इस कुंड की इस तरह उपेक्षा की है कि कुंड में काई जमी हुई है और इसके आसपास घास जमी हुई है।

कॉलेज का स्टॉफ और शिक्षा विभाग के अधिकारी इस एतिहासिक धरोहर के संरक्षण को लेकर बेहद लापरवाह नजर आए। वे नगर पालिका से इसके लिए बजट मांग रहे हैं जबकि कुंड की वे आसानी से साफ-सफाई कर सकते हैं।
सहस्त्रबाहु कुंड
बड़कोट गांव में लोहे की जाली से ढका एक सूखा हुआ जलकुंड नजर आया। स्थानीय लोगों ने बताया कि यह सहस्त्रबाहु कुंड है। ऐतिहासिक सहस्त्रबाहु कुंड की लोक मान्यता है कि जब भी बारिश नहीं होती है तो स्थानीय लोग इस जल कुंड में सामूहिक पूजा अर्चना करते हैं और पूजा समाप्त होते ही मूसलाधार बारिश होती है। बहरहाल यह कुंड उपेक्षा से जूझ रहा है। डोभाल आरा मशीन के आवासीय भवन की तलहटी में दो जल कुंड नजर आए।

इन जल कुंडों में पानी नहीं लेकिन इनके पास ही शेष शय्या पर भगवान विष्णु के साथ ही गणेश व उमा-महेश्वर की प्राचीन मूर्तियां भी स्थित है। ये मूर्तियां कब की है और इस कुंड कब अस्तित्व में आए इसका अध्ययन क्षेत्रीय पुरातत्व विभाग पौड़ी ने करना था लेकिन पृथक उत्तराखंड में यह विभाग पौड़ी ठंडी हवाओं में गहरी सांसे ले रहा है।
तिलाड़ी शहीद स्थल का मिट सकता है अस्तित्व
उत्तराखंड के जलियांवाला के नाम से प्रचलित तिलाड़ी इतिहास का वह पन्ना है जिसे पढ़ते ही आज भी रवाल्टों का खून खौल जाता है। 30 मई, 1930 को तिलाड़ी के मैदान में अधिकारों के लिए सभा कर रहे आंदोलनकारियों पर राजा नरेन्द्र शाह की फौज ने गोलियां चला दी और करबी 200 से अधिक लोग शहीद हो गए। ये शहीद तब अंग्रेजी शासन के वन अधिनियम 1927 का विरोध कर रहे थे।

अंग्रेजों ने जंगलों से लकड़ी, घास व अपनी जरुरत की वस्तुएं लाए जाने व पशु चराने पर लगाए प्रतिबंध लगा दिया था। आज भी आंदोलनकारी कंसेरु गांव के दयाराम, नगाण गांव के भून सिंह व हीरा सिंह, बड़कोट गांव के लुदर सिंह, जमन सिंह दलपति, भन्साड़ी के दलेबु, चक्रगांव के धूम सिंह, खरादी के रामप्रसाद, खुमंडी गांव के रामप्रसाद नौटियाल आदि के नाम आदर समेत लिए जाते हैं।
क्या बोले, पालिका अध्यक्ष विनोद डोभाल
बड़कोट के अध्ययन के दौरान नगर पालिका अध्यक्ष विनोद डोभाल बेहद गंभीर नजर आए। उन्होंने तिलाड़ी शहीद स्थल, पुरानी तहसील, हेलीपैड, यमुना नदी से बड़कोट नगर के नीचे भू-कटाव के साथ ही अन्य समस्याओं पर गहन अध्ययन रिपोर्ट तैयार व बड़कोट के विकास योजना तैयार करने की कवायद शुरू की है। बातचीत में उन्होंने कहा कि सरकार को रिपोर्ट सौंपने के साथ ही सुरक्षात्मक उपाय किए जाने का अनुरोध किया जाएगा। नगर पालिका अध्यक्ष विनोद डोभाल भी मानते हैं कि बड़कोट नगर खतरे में है और इसको उभारने के लिए सतही प्रयास किए जाने आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि इस संबंध में मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, जिलाधिकारी उत्तरकाशी, राज्य आपदा प्राधिकरण सचिव, जिला आपदा प्राधिकरण समेत अन्य विभागों को रिपोर्ट भेजी जा चुकी है और इसके बाद डिटेल अध्ययन रिपोर्ट भी भेजी जाएगी। उन्होंने कहा कि उनकी हर संभव कोशिश है कि बड़कोट नगर को सुरक्षित किया जाए और इसे लेकर वे सतही कोशिशें भी कर रहे हैं।
स्थानीय निवासियों ने दी आंदोलन की चेतावनी
उत्तराख्ंाड आंदोलनकारी किताब सिंह ने इस संबंध में राज्यपाल, मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री, जिलाधिकारी समेत अन्य अधिकारियों को पत्र भेजा है। पत्र में बड़कोट को भू-कटाव से बचाने के साथ ही यमुना नदी से भू-कटाव, भूस्खलन, जल संकट, अनियोजित निर्माण समेत अन्य मुद्दों पर जिला प्रशासन उत्तरकाशी व जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण पर अनदेखी के आरोप लगाए गए हैं। किताब सिंह ने कहा कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं की जाती तो वे न्यायालय का दरवाजा खटटाने के साथ ही प्रदेश व्यापी आंदोलन शुरू कर देंगे।
फिलवक्त प्रसिद्ध यमुनोत्री धाम उत्तराखंड के चार धाम में पहला धाम है और बड़कोट इसका मुख्य पड़ाव है लेकिन चारधाम यात्रा को लेकर पूरे प्रदेश में डुगडुगी पिटने वाली सरकार बड़कोट की ओर देख तक नहीं रही रही है। जिलाधिकारी के संज्ञान में तमाम मामले होने के बाद कार्रवाई न किया जाना अपने आप में गंभीर चिंतनीय विषय है।
भ्रमण पर आधारित लेख आगे भी जारी रहेंगे…