राज्य प्रवक्ता
विश्व प्रसिद्ध बदरीनाथ के कपाट खुलते ही उत्तराखंड की किस्तत के ताले भी खुल गए हैं। नेता, अधिकारी, पुरोहित, व्यापारी, बाजगी, सुनार-धुनार, घोड़-खच्चर, तीर्थ-पुरोहित, टैक्सी-मोटर, फल-फूल, नदी का पानी, गर्म कुंड की भाप सब कुछ बिकने लगा है। अड़ानी-अंबानी और भी कई उद्योगपति हरन साल करोड़ों का दान कर जाते हैं। इस साल भी आएंगे सबको इंतजार रहेगा, खास कर तीर्थ पुरोहितों और बीकेटीसी को। भगवान बदरीनाथ भले ही मंदिर के भीतर एक पत्थर में समाहित हों लेकिन नारायण की माया देखिए, बदरीनाथ से लेकर दूर समुद्र पार तक बदरीनाथ के नाम पर नोटों की गिनती बदस्तूर चौबीस घंटे जारी रहती है। बदरीनाथ का खजाना साक्षात कुबेर जी देखते है, खजाना भी खूब भरा है, सोने के घोड़, गरूड, गाय, बिल्ली, सोने के खम्भे, हीरे-मोती, नाना प्रकार के रतन लोगों ने भेंट किए हैं। नोट तो इतने की गिनती के लिए कई मशीनें है। सिक्कों के ढेर तो परेशानी ही बन जाते हैं। फल सड़ जाते हैं, खाने वाले कम पड़ जाते है। बदरीनाथ की यह महिमा जानना भी जरूरी है।
हर साल छह मास यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ में यही होता है। इतना पैसा, सोना, चांदी, हीरे, मोती, जाते कहां है। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति तो अब इसका हिसाब भी सार्वजनिक नहीं कर रही है। इस बार भी हर साल की तरह कपाट खुल गए। नया कुछ नहीं है। परंपरा का निर्वहन हो रहा है। नेता जाए न जाए कपाट तो खुलने ही हैं और हर साल खुलते रहेंगे।
असल में उत्तराखंड को चलाने वाली नौकरशाही अपना भला करने तक सीमित हो चुकी राजनीति के पास कोई विजन ही नहीं है। उत्तराखंड तीर्थ यात्रा, मंदिर, मठों, गंगा-यमुना के नाते पूरे विश्व में जाता है लेकिन सरकार सिरफल फाड़ती है पर्यटन के नाम का। राज्य के अस्तित्व में आने के साथ ही धर्मस्व मंत्रालय भी यहां गठित हो गया था लेकिन धर्मस्व को लेकर कोई प्लानिंग ही नहीं हो पाई है। प्लानिंग पर्यटन को लेकर होती है और उसी पर सब कुछ फोकस है। यात्री जब घर से बदरी-केदार, गंगा-यमुना के दर्शन को लेकर निकलता है तो उसके मन में सिर्फ भगवान होते हैं लेकिन वह उत्तराखंड पहुंचता है तो उसे ये तक पता नहीं होता कि वह कौन-कौन से धार्मिक अनुष्ठान करवाने, कहां कथा सुनने को मिलेगी, क्या वह उत्तराखंड से धार्मिक स्मृति के नाम पर ले जाए।
धर्मस्व विभाग पृथक से गठित किया जाना, राज्य के लिए बेहद जरूरी है। सरकार यात्रा शुरू होने से पहले अपना कलेंडर जारी करें और उसके सभी तीर्थ स्थलों की जानकारी के साथ ही वहंा होने वाले अनुष्ठानों की भी जानकारी हो। तीर्थों पर कम से कम एक एलईडी हो जो जानकारी दे। वहीं हवन और यज्ञ की व्यवस्था के साथ पूजा संबंधी वस्तुओं की भी दुकान हो। राजस्थान सरकार का देवस्थानम बोर्ड बेहतरीन तरीके से यात्रा की व्यवस्थाएं करता है। धर्मस्व कमिशनर तक यहां नियुक्त है और वहां धर्म धर्म की तर्ज पर चल रहा है अराजकता का माहौल कतई नहीं है। उत्तराखं में तो यहां तक पता नहीं चल रहा है कि व्यवस्थाएं किसके हाथ में हैं। सरकार के या फिर घोड़े-खच्चर वाले के हाथ में। यात्री की सुरक्षा के क्या इंतजाम हैं, इंतजाम सरकार घायल या फिर मरने के बाद ही कर रही है उससे पहले सब कुछ अपने हाल पर है। उलट-पलट ही चल रहा है सब कुछ। उत्तराख्ंाड में धर्मस्व मंत्रालय यदि विधि-विधान से कार्य करने लगे तो गोपेश्वर को गोपीनाथ, उत्तरकाशी को विश्वनाथ, बागेश्वर को बागनाथ, नैनीताल को नैना देवी, अल्मोड़ा को नंदा देवी ही पल्लवित और पुष्पित कर देगी। इन मंदिरों के पास भी कुछ कम नहीं है लेकिन इस विषय पर सरकार केा गंभीरता कार्य करने की जरूरत है।