
राज्य प्रवक्ता
जोशीमठ- विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर रम्माण मेले का आयोजन बड़ा रोमांच से भरा रहता है। बदरीनाथ के कपाट खुलने पर यह मेला सलूड-डुंग्रा गांव की पंचायत ने आयोजति किया। भूम्याळ क्षेत्रपाल की पूजा अर्चना और 18 पत्तर का नृत्य और 18 तालों पर राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान का नृत्य होता है।
दूर-दूर से क्षेत्रों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु सलूड गांव में रम्माण देखते आते है। संयुक्त राष्ट्र संघ के संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन द्वारा वर्ष 2009 में सलूड़-डुंग्रा की इस रम्माण को विश्व की सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा दिया। 07 जोड़े पारंपरिक ढोल-दमाऊ की थाप पर मोर-मोरनी नृत्य, बण्या-बाणियांण, ख्यालरी, माल नृत्य सबको रोमांचित करने वाला होता है, कुरजोगी सबका मनोरंजन करता है। अंत मे भूमि क्षेत्रपाल देवता अवतरित होकर 1 वर्ष तक के लिए अपने मूल स्थान पर विराजित हो गए।
रम्माण के संयोजक डॉ कुशल सिंह भंडारी का कहना है कि सलूड़-डुंग्रा की रम्माण सब में प्रसिद्ध इसलिए है क्योंकि यहां का मुखौटा नृत्य सब मे विशिष्ट है और संस्कृति से जुड़ा ये मेला सबको जोड़ने के साथ परंपरा को जीवित रखे हुए है। रंगकर्मी डॉ दाता राम पुरहोत का कहना है कि सलूड़-डुंग्रा की रम्माण वैदिक संस्कृति से जुड़ी और रामायण काल की घटनाओं को मूर्त रूप देती सांस्कृतिक कला है। उनका कहना है कि हजारों की संख्या में सलूड़-डुंग्रा की रम्माण में शामिल श्रद्धालुओं के कारण ही ये रम्माण विश्व की सांस्कृतिक धरोहर है।
उत्तराखण्ड का जिक्र वैदिक काल से होता आ रहा है, इस लिए आज भी उत्तराखंड में रामायण-महाभारत काल की सेकड़ों विधाएं मौजूद हैं, जिनमें से कई विधाएं विलुप्त हो गई है और कई विधाएं विलुप्त होने की कगार पर पहुच चुकी है, लेकिन कई लोगों के अथक प्रयासों एवं दृढ़ निश्चय के द्वारा कई विधाओं के संरक्षण और विकास के लिए अभूतपूर्व काम किया है। और उत्तराखण्ड को समूचे विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान दिलाई है। जो उत्तराखंड की लोक संस्कृति से रू-ब-रू कराती हैं। साथ ही वर्षों पुरानी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने का प्रयास भी करते हैं। ऐसी ही एक लोक संस्कृतिक रम्माण है। रम्माण उत्सव उत्तराखंड के चमोली जनपद में पैनखंडा (जोशीमठ) क्षेत्र के सलूड़-डुंग्रा, सेलंग और डुंग्री गांव में प्रतिवर्ष अप्रैल (बैसाख) में आयोजित होता है।
इस गांव के अलावा डुंग्री, बरोशी, सेलंग गांवों में भी रम्माण का आयोजन किया जाता है। इसमें सलूड़ गांव का रम्माण ज्यादा लोकप्रिय है। इसका आयोजन सलूड़-डुंग्रा की संयुक्त पंचायत करती है। रम्माण मेला यहां रविवार य्या बुधवार हो आयोजित होता है। यह विविध कार्यक्रमों, पूजा और अनुष्ठानों की एक श्रृंखला है। इसमें सामूहिक पूजा, देवयात्रा, लोकनाट्य, नृत्य, गायन, मेला आदि विविध रंगी आयोजन होते हैं। इसमें परम्परागत पूजा-अनुष्ठान तथा मनोरंजक कार्यक्रम भी आयोजित होते है। यह भूम्याल देवता के वार्षिक पूजा का अवसर भी होता है एवं परिवारों और ग्राम-क्षेत्र के देवताओं से भेंट करने का मौका भी होता है।
अंतिम दिन लोकशैली में रामायण के कुछ चुनिंदा प्रसंगों को प्रस्तुत किया जाता है। रामायण के इन प्रसंगों की प्रस्तुति के कारण यह सम्पूर्ण आयोजन रम्माण के नाम से जाना जाता है। इन प्रसंगों के साथ बीच-बीच में पौराणिक, ऐतिहासिक एवं मिथकीय चरित्रों तथा घटनाओं को मुखौटा नृत्य शैली के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। रम्माण उत्सव में जिस नृत्य शैली का उपयोग किया जाता है, वह मुखौटा नृत्य शैली है। इस में नृत्यक अपने मुख में मुखौटा पहनता है, फिर नृत्यकला का प्रदर्शन करते है। इसमें कोई भी संवाद पात्रों के बीच नहीं होता। पूरी रम्माण में 18 मुखौटों, 18 तालों, एक दर्जन जोड़ी ढोल-दमाऊ व आठ भंकोरों के अलावा झांझर व मजीरों के जरिए भावों की अभिव्यक्ति दी जाती है।
मुखौटों के दो रूप हैं।
पहला- द्यो पत्तर यानी देवताओं के मुखौटे।
दूसरा- ख्यल्यारी पत्तर यानी मनोरंजन के मुखौटे।
रम्माण के विशेष नृत्य
बण्या-बण्याण रू- यह नृत्य तिब्बत के व्यापारियों पर आधारित, जिस में उन पर हुए चोरी व लूटपाट की घटना का विवरण नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करते है।
म्योर-मुरैण रू- यह नृत्य पहाड़ो पर होने वाली दैनिक परेशानीयों जैसे रू- पहाड़ों में लकड़ी और घास काटने के लिए जाते समय जंगली जानवरों द्वारा किए जाने वाले आक्रमण का चित्रण होता है।
माल-मल्ल रू- इस नृत्य में स्थानीय लोगो व गोरखाओं के बीच हुए युद्ध का वर्णन होता है।
कुरू जोगी रू- यह एक प्रकार का हास्य नृत्य है, इस में रम्माण का हास्य पात्र, जो अपने पूरे शरीर पर चिपकने वाली विशेष प्रकार की घास (कुरू) लगाकर लोगों के बीच चला जाता है। कुरू चिपकने के भय से लोग इधर-उधर भागते हैं, लेकिन कुरू जोगी उन पर अपने शरीर में चिपके कुरू को निकालकर फेंकता है। सामान्य भाषा में इसे एक जोकर की संज्ञा दी जा सकती है, जो लोगो को हँसाने और मनोरंजन करने का कार्य करता है।
सलूड़-डुंग्रा से विश्व धरोहर तक का सफ़र
रम्माण कौथिग (उत्सव) वर्ष 2007 तक सलूड़ तक ही सीमित था। लेकिन गांव के डॉ. कुशल सिंह भंडारी की मेहनत का नतीजा था, कि आज रम्माण को विश्व धरोहर में स्थान मिला हुआ है। डॉ. भंडारी ने रम्माण को लिपिबद्ध कर इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया। उसके बाद इसे गढ़वाल विवि लोक कला निष्पादन केंद्र की सहायता से वर्ष 2008 में दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र तक पहुंचाया। इस संस्थान को रम्माण की विशेषता इतनी पसंद आयी कि कला केंद्र की पूरी टीम सलूड-डूंग्रा पहुंची और वे लोग इस आयोजन से इतने अभिभूत हुए कि 40 लोगों की एक टीम को दिल्ली बुलाया गया। इस टीम ने दिल्ली में भी अपनी शानदार प्रस्तुतियां दी।
बाद में इसे भारत सरकार ने यूनेस्को भेज दिया। 2 अक्टूबर 2009 को यूनेस्को ने पैनखंडा में रम्माण को विश्व धरोहर घोषित किया। तथा आईसीएस (प्ब्ै) के दो सदस्यीय दल में शामिल जापानी मूल के होसिनो हिरोसी तथा यूमिको ने ग्रामवासियों को प्रमाणपत्र सौंपे।
मेला आयोजन में संस्कृति कर्मी डॉ दाताराम पुरोहित, मेले के संयोजक डॉ कुशल सिंह भंडारी, भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य कृष्णमणि थपलियाल, ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष विक्रम फर्स्वाण, भरत सिंह कुंवर, गुड्डू लाल, विकेश कुंवर, धर्मेंद्र नेगी, समेत गांव के तथा बाहर के गांवों से आये हजारों लोग इस मेले के साक्षी बने।