त्रिजुगीनारायण मंदिर में विवाह बंधन में बंधते नव युवक-युवतियां।
राज्य प्रवक्ता
हिमालय की तलहटी में बसा दिव्य और पवित्र स्थल त्रियुगीनारायण मंदिर को मां पार्वती व शिव के विवाह स्थल की मान्यता है और वर्तमान में यह स्थल विवाह आयोजनों के लिए देश-विदेश में प्रसिद्धि प्राप्त कर रह रहा है। यहां बड़ी संख्या में नव युवक-युवतियां विवाह के बंधन में बंध कर त्रियुगीनारायण को अपने विवाह का साक्षी बना रहे हैं। विवाह मुहूर्त में यहां बड़ी संख्या में विवाह उत्सव आयोजित किए जा रहे हैं।त्रियुगीनारायण में विवाह के लिए फरवरी-मार्च में बकायदा पंजीकरण कराए जाते हैं और पंजीकरण के बाद ही विवाहोत्सव के लिए समय दिया जाता है।
त्रिजुगीनारायण तीर्थ पुरोहित समिति के अध्यक्ष सच्चिदानंद पंचपुरी ने बताया कि शिव पार्वती विवाह स्थल त्रियुगीनारायण में नव युगल शादी के बंधन में बंधने पहुंचते हैं। जिनका समिति द्वारा परिजनों की सहमति के बाद रजिस्ट्रेशन किया जाता है। उन्होंने बताया कि रजिस्ट्रेशन फरवरी मार्च तक शादी के शुभमुहूर्त पर किए गए हैं।
समिति के सचिव सर्वेशानन्द भट्ट ने बताया कि उत्तराखंड सरकार भी इसे वेडिंग डेस्टिनेशन बनाने की बात कह रही है लेकिन सोनप्रयाग-त्रियुगीनारायण सड़क मार्ग की हालत खस्ता है, यहां सड़क सुधारीकरण पर करोड़ों रुपये खर्च भी हुए लेकिन सड़क की स्थिति नहीं सुधर पाई है। इस वजह कई लोग यहां विवाह की योजना नहीं बनाते। इसके अलावा शौचालय, सफाई व्यवस्था भी दुरुस्त करने की आवश्यकता है।
त्रियुगीनारायण मंदिर की धार्मिक मान्यता
पंडित सुरेश शास्त्री मंदिर की धार्मिक मान्यता बनाते हैं कि शास्त्रों में मंदिर का उल्लेख किय गया है। वे बताते हैं कि यह मंदिर शिव का पवित्र स्थान है और यह वह स्थान है जहां भगवान वासुदेव नारायण व अन्य देवी-देवता मां पार्वती व शिव विवाह के साक्षी बने थे। यही वह स्थान है जहां मां पार्वती ने भगवान शिव का प्रेम पाने के लिए गौरीकुंड में कठोर तपस्या की।यहां तीन युगों, सत्ययुग, त्रेता और द्वापर से अखंड धूनी जल रही है और यह धूनी दिव्य विवाह के दौरान प्रज्वलित की गई अग्नि थी जो आज भी जल रही है।
ब्रह्म शिला: मंदिर के सामने एक पवित्र पत्थर आधार के रूप में स्थापित है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसी पर विवाह समारोह आयोजित किए गए थे। मंदिर में तीन पवित्र जल कुंडों के प्रति धार्मिक आस्था विद्यमान है। रुद्र कुंड, ब्रह्मा कुंड और विष्णु कुंड यहां आज भी विद्यमान हैं।
