
ऋषिकेश में स्कूटी पर सवार हो होली खलते प्रेमचंद अग्रवाल।
राज्य प्रवक्ता
स्वनाम धन्य प्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने होली पर संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद का एक गीत सुना। नेगी के गीत मनों को छूते हैं, और हर शब्द पहाड़ बुदबुदाता है और गाता है। उनके हर गीत की भाषा अत्यंत प्रभावशाली और हर मन की बात होती है। ‘मत मारो प्रेम लाला पिचकारी लाला, तेरी पिचकारी में गाली भरी हैं…’।
यह गीत भी जमकर गाया गया, खासकर होली पर। गीत से यह स्पष्ट तो हुआ कि पहाड़ी समाज प्रेमचंद जैसे लोगों को स्वीकार नहीं करेगा और इस तरह के लोगों के विरोध से एक नया विवाद जन्म लेगा। भाजपा भी गीत सुन रही है लेकिन प्रभाव नजर नहीं आ रहा कारण क्या है, यह समझना मुश्किल नहीं है। उत्तराखंड के सर्वोच्च सदन विधानसभा में जिम्मेदार पर होते हुए प्रेम चंद की यह हरकत दंडनीय है।
प्रेमचंद की बात पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत व सांसद बलूनी को भी चुभी। दोनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी, बलूनी ने तो यहां तक कहा कि बख्शा नहीं जाएगा लेकिन अभी तक कोई एक्शन नहीं हुआ। सवाल ये भी है कि भाजपा क्या पहाड़ियों में और क्रोध भरना चाहती है या फिर भाजपा में ऐसे सलाहकार मौजूद है जो नहीं चाहते कि 2027 में भाजपा के पक्ष में परिणाम आएं, फिलवक्त यह तो भाजपा को ही तय करना है।
अब प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की बात करें तो गणेश गोदियाल इस पर लगातार तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं और सुनने में आया है कि कुछ कांग्रेसी उन्हें पहाड़ विरोधी करार देते हुए हाई कमान तक पहुंच चुके हैं। कांग्रेस में कुछ ऐसे नेता हैं, जो मानते हैं कि पहाड़ की पैरवी से मैदान कमजोर हो जाएगा और मैदान की सीटों पर असर पड़ेगा। यह तर्क कितना उचित है यह तो कांग्रेस के बुद्धिजीवी ही जाने लेकिन पिछले चुनाव भी देख लेते जब पहाड़ और मैदान नहीं था। बहरहाल कांग्रेस आदतन अपनों की टांग खिंचाई में लगी है।
फिलवक्त पहाड़ों का गुस्सा धीरे-धीरे आक्रोश में तब्दील हो रहा है और अंदरखाने भाजपा के कई विधायक ये कहने लगे हैं कि हटाते क्यों नहीं। आखिर प्रेमचंद में ऐसा क्या है। विधायक का कार्यकाल पांच साल का होता है और धीरे-धीरे पांच साल बीत रहे हैं। अब 2027 में विधानसभा चुनाव होने है, नेताओं के कंधे अब धीरे-धीरे नीचे झुकते नजर आ रहे है, धमंड में आंखों पर चढ़े चश्मे खिसकने लगे हैं। हमने कई नेता ऐसे भी देखे जो पहले बीडी के टोडे तलाश कर पीते थे और नेता बनते ही सिगार और सिगरेट और फिर टोडे तलाशते नजर आए। लक्ष्मी तो चंचल है पर नाम स्थायी ही होता है।
इस सबके बीच 2029 में होने वाले परिसीमन पर भी कुछ लोग पहाड़ों को धकेलने की कोशिश में है। प्रयास यह है कि 2029 में जो 21 सीटें बढ़नी हैं वह मैदान में बढ़ जाए तो पहाड़ों का प्रतिनिधित्व ही खत्म हो जाए। इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूडी भूषण ने स्पष्ट कहा कि परिसीमन क्षेत्रफल के आधार पर हो। अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस तरह का प्रस्ताव वे सदन में ला सकती है कि परिसीमन जनख्या के आधार पर नहीं बल्कि क्षेत्रफल के आधार पर हो।
प्रेमचंद की होली के कई फोटो सोशल मीडिया पर सामने आए। रंग गुलाल से लतपथ, पहाड़ी गीतों पर नाच, स्कूटी, मोटर साइकिल, टैंपों, विक्रम से वे लोगों के घर जाते नजर आए। सड़क पर जो मिला वहीं रोका और रंग लगाने के साथ गले भी मिले। यानि प्रेमचंद ने पूरी कोशिश यही की कि मैं पहाड़ी हूं और पहाड़ का सम्मान करता हूं। इससे यह तो नजर आ रहा है कि मंत्री पद पर तलवार लटकी हुई है, वे हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि इसे रोका जाए। ऐसा कोई नहीं, जिससे वे मिले नहीं और होली का रंग न चढ़ाया हो। पर नेगी लगातार गा रहे हैं मतमारो प्रेमलाला……