
ये वहीं सुरंग है जहां कैद है 40 इंसान
आखिर कौन सा लालच बन गया है उत्तराखंड का दुश्मन
वहां हेलीकॉप्टर टैंपों की तरह कंप्टिशन में दौड़ रहे हैं
पूरे हिमालय की इन दिनों शांति भंग है और ऐसे में उत्तराखंड में चारों तरफ टूट-फूट, इंसानों का विलाप ही है
राज्य प्रवक्ता
दुर्भाग्य कहें या फिर कंपनी की लापरवाही, स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार की कमी। मध्य हिमालय के हाई रिस्क जोन, यानी आपदा की लिहाज से जोन पांच में स्थित सिलक्यारा से बड़कोट की ओर। इस जगह का नाम राडी टॉप है, गढ़वाली बोली में राडी का अर्थ खिसकना होता है, सीधा सा अर्थ है कि यह जगह भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्र है। पूरी पहाड़ी ही लूज मेटेरियल पर है और इस लूज मटेरियल के नीचे सुरंग का निर्माण किया जा रहा है। हादसों को स्वयं निमंत्रण दिया रहा। निर्माण के लिए तमाम मानक हैं लेकिन एक भी मानक का अनुपालन नहीं होता। भू-वैज्ञानिक संस्थाओं पर भी प्रश्न चिन्ह है। जब एक सामान्य व्यक्ति रहने के लिए घर बनाता है तो उससे पहले उसे तमाम मानकों का पाठ पठाया जाता है लेकिन साढ़े चार किलोमीटर की सुरंग निर्माण के समय तमाम कायदे कानून कैसे हिरन हो जाते हैं। पहाड़ के लोगों को समझा जाता है कि विकास के लिए कुछ तो खोना पड़ेगा लेकिन ये कैसा विकास है कि जंगल के जंगल साफ, पहाड़ों को खोदकर उसकी मिट्टी व पत्थर अलग कर दिए जाते हैं। नदियां लगातार रसातल की ओर उन्मुख हैं। हवाओं मशीनों का धुआं घुल रहा है। ऑल वेदर के मलबे के नीचे दब कर कई जिंदगियां असमय मृत्यु को प्राप्त हुई हैं। रैणी ऋषिगंगा जल परियोजनों की सुरंग में मलबा भरने से करीब तीन सौ गरीब मजदूरों की मौत हुई। शव सिर्फ 103 के मिले। बाकी अभी भी लापता है। उच्च हिमालय क्षेत्र केदारनाथ में जहां बिल्कुल खामोशी होनी चाहिए वहां हेलीकॉप्टर टैंपों की तरह कंप्टिशन में दौड़ रहे हैं। पूरे हिमालय की इन दिनों शांति भंग है और ऐसे में उत्तराखंड में चारों तरफ टूट-फूट, इंसानों का विलाप ही हैं। आखिर कौन सा लालच बन गया है उत्तराखंड का दुश्मन। इस पर चिंतन की आवश्यकता है, भू-वैज्ञानिक संस्थाओं, आपदा प्राधिकरण और अन्य संस्थाओं पर भी पैनी नजर रखने की जरूरत है। पीढ़ियां हमारी है और हमें ही उनके बारे में सोचना है। पहाड़ों को पहाड़ियों ने कभी इनकम का सोर्स नहीं समझा बल्कि बच्चों की तरह जंगलों, नदिंयां, गाड-गदेरों को संरक्षण दिया है। अब तक केवल पौधे रोपने का मंचन भर होता है। पिछले पांच साल में ही देखे तो लाखों पौधे नेताओं, अधिकारियों समेत अन्य ने लगाए लेकिन कहां हैं वे जंगल, बता पाएगा वन विभाग।
संजय कर रहे हैं सख्त कार्रवाई की मांग
यमुनोत्री विधायक संजय डोभाल ही एक ऐसा व्यक्ति है जो रविवार से ही कह रहे हैं कि लापरवाही हुई है और इस लापरवाही पर सख्त कार्रवाई होनी ही चाहिए। यही वजह भी रही मुख्यमंत्री के निर्देश पर आपदा प्राधिकरण के एक अधिकारी ने जांच के निर्देश दिए हैं और भू-वैज्ञानिकों की टीम जांच कर रही है। संजय डोभाल जो कुछ कह रहे हैं वह पहाड़ के हित में है। राजनीति से ऊपर उठकर मात्र पहाड़ का चिंतन किया जाए तो निश्चत ही इस धरा का सुख पीढ़ियों को भी मिलेगा।
मजदूर सुरक्षित, मिल रहा है, खाना-पानी
खैर फिलवक्त 72 घंटे से अधिक होने जा रहे हैं और चालीस मजूदर अभी भी सुरंग में कैद है। आपदा प्राधिकरण के अफसर कह रहे हैं कि अब जल्द ही उन्हें निकाल दिया जाएगा। अच्छी बात यह है कि मजदूर सुरक्षित है और उन्हें खाना, पानी, दवाईयां भी पहुंचाई जा रही हैं।