राज्य प्रवक्ता
‘नागाधिराज हिमालय के वरद पुत्र और पुत्रियों’ अब भाजपा की जनसभाओं में यह नहीं सुनाई देगा। इस संबोधन के साथ अपने भाषण शुरू करने वाले मोहन सिंह रावत गांववासी ने आज जीवन की अंतिम सांस ली। वे भले ही इस पृथ्वी से विदा हो गए लेकिन उनके संघर्ष और हिमालय के लोगों के लिए कार्य हमेशा याद रखें जाएंगे और वे जो विरासत में अपना संघर्ष छोड़ गए वह नई पीढ़ी की प्रेरण बनेगा।
पौड़ी गढ़वाल के ग्राम आमधार, बछेली में 2 फरवरी 1948 का उनका जन्म हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक के संघ के बाल स्वयंसेवक रहने के साथ ही पढ़ाई के दौरान वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के विभिन्न पदों पर रहे। वर्ष 1975 में आपातकाल के दौरान वे करीब नौ महीने जेल में रहे। पौड़ी के बाद उन्हें देहरादून और फिर बरेली जेल भेज दिया गया। अपने फेसबुक पेज पर मोहन सिंह रावत गांववासी उन दिनों को याद करते हुए लिखते हैं कि जेल जाते वक्त उनका वजन 48 किलो था लेकिन जब बाहर निकले तो उनका वजन 64 किलो हो गया। अपने जीवन काल में कुल 37 बार जेल गए। आपात काल के साथ ही उन्होंने स्वामी मन मथंन के साथ गढ़वाल विश्वविद्यालय आंदोलन में सक्रिय योगदान दिया। उत्तराखंड आंदोलन में भी उनकी बढ़चढ़कर हिस्सेदारी रही। आरएसएस के वे 15 साल तक प्रचारक रहे।
गांववासी के राजनीतिक जीवन पर नजर दौड़ाए तो वर्ष 1980 में वे भाजपा उत्तरांचल विभाग सचिव, वर्ष 1996 में उत्तरांचल भाजपा के उपाध्यक्ष रहे। वर्ष 1996 में मोहन सिंह रावत पौड़ी विधानसभा क्षेत्र से पहली बार विधायक चुने गए तब इन्होंने नरेंद्र सिंह भंडारी को चुनाव हराया। उत्तराखंड पृथक राज्य बनने के बाद गांववासी को पंचायती राज विभाग के मंत्री का दायित्व सौंपा गया। वर्ष 2002 में गांववासी चुनाव हार गए। इसके बाद उन्हें भाजपा ने राष्ट्रीय पंचायत प्रकोष्ठ की जिम्मेदारी सौंपी। गांववासी अपने जीवनकाल में अभाविप, युवा मोर्चा, विवेकानंद विचार मंच, मूक विद्यालय नन्हीं दुनिया के सदस्य रहे।
गांववासी ने हिमालय की कई यात्राएं की भारत-नेपाल यात्रा उनके जीवन काल की महत्वपूर्ण यात्रा रही। इस यात्रा का मकसद हिमालयी राज्यों को एक मंच पर लाना था। जुलाई 2013 में गांववासी ने उत्तराखंड बनने के बाद जिला मुख्यालयों खासकर गढ़वाल कमिश्नरी पौड़ी की हालात पर गंभीर चिंता जाहिर करते हुए सरकार को आगाह किया। वर्ष 2018 में उन्हें टीएचडीसी के निदेशक की जिम्मेदारी सौंपी गई। जुलाई 2016 में उन्होंने देवभूमि लोक संस्कृति विरासत यात्रा के साथ ही अर्द्धकुंभ के दौरान हरिद्वार में देव डोलियों की शोभा यात्रा का आयोजन किया। इस यात्रा को लेकर उन्होंने उत्तराखंड के सभी जिलों का भ्रमण कर लोगों को यात्रा को लोक संस्कृति के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण बताया।
वर्ष 2013 में अर्द्धकुंभ समाप्त होने के बाद गांववासी ने तीर्थाटन, पर्यटन और पर्यावरण चेतना अभियान और गांव बसाओ आंदोलन के तहत सीमांत जिलों का भ्रमण भी किया। इस दौरान उन्होंने बाडाहोती में तिंरगा भी फहराया। गांववासी साप्ताहिक समाचार पत्र योगभूमि का संपादन भी किया। लेखक, पर्यटन, साहसिक पदयात्रा, ट्रैकिंग, पर्वतारोहण में वे जीवनभर सक्रिय रहे। गांववासी पौड़ी से पलायन नहीं किया बल्कि क्यूंकालेश्वर स्थित झाली-माली आश्रम से ही समाज में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते रहे।