
राज्य प्रवक्ता
पितृ तर्पण के लिए तीन स्थान बताए गए हैं। ब्रहमकपाल बदरीनाथ, नारायणी शिला हरिद्वार का गया बिहार। इन तीनों स्थानों पर सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश पर शुरू होने वाले श्राद्ध पक्ष में तर्पण किए जाते हैं। अश्वीन माह के कृष्ण पक्ष में पितृ लोक धरती के करीब पहुंच जाता है और पितृ पृथ्वी पर अपने घर पहुंच जाते हैं। यह समय ऐसा होता कि जब पितृ के निमित्त तर्पण व ब्राहमण भोजन के साथ ही कौवे और गाय को भी भोजन परोसा जाता है। कहते है कि जिस घर में तर्पण व पितृ पूड़ी नहीं रखी जाती वहां से पितृ रोते हुए अपने लोक जाते हैं। तर्पण और पिंड दान के लिए तीन स्थान बताए गए हैं, ब्रहम कपाल बदरीनाथ, नारायणी षिलाप्रत्येक घर पितृ के निमित ब्राहमण भोजन, गाय और कौवे को भोजन दिया जाता है।
हरिद्वार स्थित नारायणी शिला का महत्व
शास्त्रों में उल्लेख है कि नारद जी की प्रेरणा से गयासुर ने अपने पित्रों के मोक्ष के लिए भगवान नारायण से शत्रुता करने का निश्चय किया। नारद जी ने गयासुर को बताया कि भगवान नारायण बद्रीश पुरी बदरीनाथ में निवास करते हैं, तुम्हें श्री हरि वहीं मिलेंगे। गयासुर बदरीनाथ पहुंचा लेकिन गयासुर के पापों को देखते हुए श्री हरि ने उसे दर्शन नहीं दिए। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि इससे नाराज गयासुर नारायण का विग्रह उठाकर भागने लगा। विष्णु ने भी गयासुर का पीछा करना शुरू कर दिया। विग्रह का धड़ ब्रहमकपाल बदरीनाथ में गिरा, धड़ से नाभि तक का हिस्सा नारायण शिला हरिद्वार और पैर का हिस्सा गया बिहार में गिरा। भगवान विष्णु के चरण गिरते ही उसकी मृत्यु हो गई लेकिन गयासुर का शरीर शांत नहीं हुआ। तब भगवान ने अपने गदे की नोंक से उसके मस्तक पर प्रहार किया। जिससे उसका शरीर शांत हो गया। तब भगवान विष्णु ने गयासुर को वरदान दिया। बोले, गयासुर अपने पित्रों के मोक्ष के लिए यह सब किया इसलिए इन तीनों स्थानों पर श्राद्ध, तर्पण करने से अतृप्त पित्रों को तृप्ति प्राप्त होगी। नारायणी शिला के विषय में बताया गया है कि यहां भगवान श्री हरि का ह्दय स्थल गिरा था, उनके ह्दय में सदैव लक्ष्मी जी का वास होता है इसलिए यह स्थान श्रेय कर है। ब्रहमकपाल और गया में तर्पण, पित्रों के निमित्त किए पूजन अर्चन से पित्रों को मोक्ष प्राप्त होता है लेकिन नारायणी शिला में तर्पण आदि से पितृ पित्रों में मिल जाते हैं और जब पितृ पित्रों में मिलेंगे तब मोक्ष संभव है।
नवमी तिथि मैने भी अपने छोटे भाई सीताराम के साथ श्रीनारायणी शिला पर पितृ तर्पण किए।
समस्त पित्रों की तृप्ति के लिए यह आवश्यक है। इस दौरान शिक्षा निदेशालय देहरादून में तैनात मेरे परम मित्र मुकेश बहुगुणा ने भी पितृ तर्पण किया। असल में सीताराम और मुकेश हर साल यहां श्राद्ध पक्ष में तर्पण करने जाते हैं। मेरा वहां पितृ विर्सजन में जाना होता है। इतनी भीड़ यहां थी कि पांव रखने तक की जगह नजर नहीं आ रही थी। राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजराज समेत कई राज्यों से लोग यहां पितृ तर्पण व अतृप्त पित्रों को तर्पण देने आए थे। शिला की पूरे देश में मान्यता है। यहां भूत, प्रेतबाधा, काल सर्प योग, पितृ दोष का भी निवारण होता है।