अब केदारनाथ के ओंकारेश्वर व यमुनोत्री के खरसाली में होंगे दर्शन
राज्य प्रवक्ता
विश्व प्रसिद्ध ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग केदारनाथ धाम के कपाट रविवार को भैया दूज के पर प्रातः 08:30 बजे शीतकाल को बंद हो गए। भारतीय सेना के बैंड की भक्तिमय धुन, वैदिक विधि-विधान व धार्मिक परंपराओं के साथ कपाट बंद करने की प्रक्रिया की गई।
रविवार प्रातः पांच बजे से बीकेटीसी अध्यक्ष की उपस्थिति में कपाट बंद करने की प्रक्रिया शुरू हुई। बीकेटीसी के आचार्य, वेदपाठियों, पुजारीगणों ने भगवान केदारनाथ के स्वयंभू शिवलिंग की समाधि पूजा की। स्वयंभू शिवलिंग को भस्म, स्थानीय पुष्पों बेल पत्र, रुद्राक्ष, बाघम्बर वस्त्र, आदि से समाधि रूप दिया गया। प्रातः 8:30 बजे बाबा केदार की पंचमुखी उत्सव डोली को मंदिर से बाहर लाया गया, इसके बाद केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए।
कपाट बंद होने के साथ ही बाबा केदार की पंचमुखी उत्सव डोली ने अपने पहले पड़ाव रामपुर के लिए प्रस्थान किया। हजारों श्रद्धालु बाबा की पंचमुखी डोली के साथ पैदल ही रवाना हुए। श्रद्धालुओं के लिए जगह – जगह भंडारे आयोजित किये। केदारनाथ में मौसम साफ रहा, आस-पास बर्फ होने से सर्द बयारें भी चलती रही, लेकिन श्रद्धालुओं में भारी उत्साह रहा। बाबा केदार की पंचमुखी डोली आज रामपुर रात्रि प्रवास करेगी 4 नवम्बर सोमवार को विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी रात्रि प्रवास कर 5 नवम्बर मंगलवार को शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ पहुंचेगी। शीतकाल में बाबा केदार की पूजा ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ में ही संपादित होगी। बदरीनाथ- केदारनाथ मंदिर समिति अध्यक्ष अजेंद्र अजय समेत 15 हजार से अधिक श्रद्धालु कपाट बंद होने के साक्षी बने। कपाट बंद होने के अवसर पर मंदिर को दीपावली के दिन से ही भव्य रूप से फूलों से सजाया गया था।
वहीं दूसरी ओर खरसाली गांव से बहन यमुना को लेने शनि महाराज यमुनोत्री पहुंचे और उसके बाद कपाट बंद होने के साथ ही डोली की यमुनोत्री धाम से शानदार विदाई हुई। इस मौके पर हजारों की संख्या में तीर्थ यात्री व स्थानीय लोग मौजूद रहे।