तीर्थाटन की अलग नीति पर कार्य करना जरूरी, महाराज जी तीर्थाटन को पर्यटन कहना आप तो छोड़िए
राज्य प्रवक्ता
रूद्रप्रयाग जिले में क्रौंच पर्वत पर स्थित कार्तिकेय स्वामी को दक्षिण भारत में मुरगन स्वामी के नाम से जाना जाता है। मंगलवार को दक्षिण भारत से आए एक सौ इक्कावन श्रद्धालुओं ने कार्तिकेय स्वामी मंदिर में 108 बालमपुरी शंख पूजन और यज्ञ किया। दक्षिण भारत में कार्तिकेय स्वामी आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है। करोड़ों की मयूर सवार कार्तिकेय स्वामी के प्रति आस्था है। उत्तराखंड के कार्तिकेय स्वामी के दो मंदिर है। उत्तरकाशी में कार्तिकेय का मंदिर स्थित है और इसे हरि महाराज के नाम से पूजा जाता है। कार्तिकेय स्वामी श्री हेमकुंड साहिब के समान्तर ही भविष्य में एक बड़ा तीर्थ बनने जा रहा है। प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज बार-बार ये कहते हैं कि कार्तिकेय स्वामी में पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा लेकिन यह पर्यटन है या तीर्थाटन। जब भी पर्यटन की बात होगी तो पर्यटन के अनुसार ही आचरण होगा। पर्यटक मौजमस्ती चाहता है लेकिन तीर्थाटन की बात होगी तो यज्ञ, हवन, पूजा, पाठ, ध्यान और सात्विकता की बात होगी। कार्तिकेय स्वामी मंदिर में दक्षिण भारत के पंडित और तीर्थ यात्री पूजा अर्चना के लिए आए और सरकार ने भी इस यज्ञ में आहुति डाली। पर्यटन मंत्री को पर्यटन और तीर्थाटन में अंतर समझना होगा। श्री महाराज के तमाम प्रयास उत्तराखंड के विकास के लिए है लेकिन धर्म का यह आर्चाय तीर्थाटन व पर्यटन में अंतर क्यों नहीं कर पा रहा है, यह समझ से परे है।
महाराज जी पर्यटन नहीं तीर्थाटन बोलिए
उत्तराखंड में पहली प्राथमिकता तीर्थाटन की होनी चाहिए और राज्य के नाम के अनुरूप इसका विकास बेहद जरूरी है लेकिन सरकार कोई योजना ही बनाने को तैयार नहीं है। तीर्थाटन के लिए अलग से नीति बनाया जाना बेहद जरूरी है और इस दिशा में योजनाबद्ध तरीके से कार्य करना जरूरी है।
मंगलवार कार्तिकेय स्वामी मंदिर में बालमपुरी शंख पूजा, हिमालय के ऊंचाई पर गूंजे वेद मंत्र
कार्तिकेय स्वामी मंदिर में 108 बालमपुरी शंख पूजा व हवन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें प्रदेष के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज, केदारनाथ विधायक शैला रानी रावत, दक्षिण भारत से आए शिवाचार्य व गुरुजनों ने पूजा अर्चना की। इस अवसर पर पर्यटन मंत्री ने कहा कि कार्तिक स्वामी मंदिर में 108 बालमपुरी शंख से पूजा व हवन किया गया और दक्षिणा वर्त से स्वामी कार्तिकेय का जलाभिषेक किया गया। उन्होंने कहा कि पृथ्वी की परिक्रमा करने के बाद कार्तिकेय स्वामी यहां पर पहुंचे तो गणेश को श्रेष्ठ पद दिया गया है जिसके बाद कार्तिकेय ने अपनी माँ पार्वती से नाराज होकर यहाँ पर तपस्या की। उन्होंने कहा कि इसके बाद कार्तिकेय दक्षिण भारत को चले गए। जहां उनकी मुरगन स्वामी के नाम से विशेष रूप से आराधना की जाती है। उन्होंने कार्तिक स्वामी मंदिर व कार्तिकेय स्वामी के जीवन के बारे में विस्तार से बताया। कहा कि उत्तर भारत का यह कार्तिकेय स्वामी का एकमात्र मंदिर है। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत में तमिलनाडू व कर्नाटक में भगवान कार्तिकेय के बहुत अनुयायी हैं तथा आज दक्षिण के शिवाचार्य आए हैं तथा सभी अनुयायी देश के आगे बढने की कामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगस्त्यमुनि के अगस्त्य ऋषि, कार्तिकेय स्वामी मंदिर व अनसूया मंदिर को पर्यटन सर्किट से जोड़ा जाएगा तथा पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कार्तिकेय स्वामी मंदिर के विकसित होने से स्थानीय स्तर पर भी रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। उन्होंने कहा कि कार्तिकेय मंदिर को पर्यटन के मानचित्र पर उभरकर आए इसके लिए पर्यटन की दृष्टि से इसे विकसित किया जाएगा। उन्होंने कार्यक्रम में शामिल होने पर सभी शिवाचार्य, गुरुजनों एवं भक्तजनों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर ड्रोन के माध्यम से श्रद्धालुओं पर पुष्पवर्षा की गई। पदम श्री शिवमणि व उनके साथियों द्वारा अपनी प्रस्तुति भी दी गई।